क्या आप दुसरो के मन की बाते जानना चाहते है

अक्सर हम सोचते हैं कि काश हम दूसरों के मन की बातें पढ़ पाते, वो क्या सोच रहे हैं, जान पाते। दुनिया के लगभग 70 फीसदी लोग न केवल खुद का वरन दूसरों का भविष्य जानने की भी इच्छा रखते हैं। शायद यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्र जेसे विषयों के प्रति लोगों की जिज्ञासा कम होने की बजाय दिनों-दिन बढ़ रही है।

लेकिन आप कैसा महसूस करेंगे अगर आपको पता चले कि ज्योतिष की विद्या अपने साथ कुछ जिम्मेदारियां भी लाती हैं। जिन्हें नहीं जानना और नहीं मानना आपके लिए घातक भी हो सकता है या फिर आपके पूरे जीवन को भी बर्बाद कर सकता है।

जी हां!, यह सत्य है। प्राचीन ज्योतिष विद्या सिखाने वाले लोग अपने शिष्यों को पहले कुछ नियमों का पालन करना सिखाते थे, उसके बाद ही उन्हें ज्योतिष का ज्ञान दिया जाता है, ताकि शिष्य कभी रास्ता न भूलें। आज हम ऐसे ही कुछ नियमों के बारे में जानेंगे।

सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात ब्रूयान्नब्रूयात् सत्यंप्रियम्।
प्रियं च नानृतम् ब्रुयादेषः धर्मः सनातनः।।

अर्थात् सदा सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए। परन्तु यदि सत्य अप्रिय हो तो उसे नहीं बोलना चाहिए। इस वाक्य का सीधा सा अर्थ है कि एक ज्योतिषी को कभी भी किसी को भी उसके भविष्य संबंधी दुखद घटनाओं के बारे में नहीं बताना चाहिए। हां, उसे इस तरह चेतावनी अवश्य दे सकते हैं कि वो सावधान रहें।

धैर्य रखें

कोई भी व्यक्ति किसी ज्योतिषी के पास तभी जाता है जब वह बहुत अधिक असमंजस में होता है या जीवन से निराश होता है अथवा उसे कहीं कोई रास्ता नहीं सूझ रहा होता है। ऐसे में वह ज्योतिषी से कई अटपटे सवाल कर सकता है। ज्योतिषी को इन बातों को धैर्यपूर्वक सुनना चाहिए और उसकी मनस्थिति को समझते हुए ही उस व्यक्ति को जवाब देना चाहिए। ऐसा करके ज्योतिषी न केवल उस व्यक्ति की मदद करता है वरन उसे सकारात्मक जीवन जीने की भी हिम्मत देता है। यंहा आपकी भूमिका केवल ज्योतिषी की नहीं वर्ण एक अच्छे मनोवैज्ञानिक की भी रहती है इसलिए नकारात्मकता से बचें|

भविष्यवाणी करने के पहले काल, देश और परिस्थितियां अवश्य देख लेनी चाहिए

अक्सर हमारी समाज का ताना-बाना हमारे आस-पास के माहौल से प्रभावित होता है। ऐसे में ज्योतिषी को सामने वाले व्यक्ति के आस-पास के माहौल को देखने-समझने तथा सामाजिक मान्यताओं के हिसाब से ही भविष्यवाणी करनी चाहिए। उदाहरण के लिए भारत में एक से अधिक विवाह करना अनैतिक हो सकता है परन्तु पश्चिमी देशों में यह एक सामान्य परंपरा है। इसी प्रकार एक आस्तिक व्यक्ति को ईश्वर संबंधी उपाय बताना अधिक लाभदायक होता है तो एक नास्तिक को अच्छे कर्म करने की सलाह देना उचित है।

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