9 अक्टूबर को पितृपक्ष समापन, तर्पण करने से शुभ हो जाती हैं हाथ की रेखाएं|

9 अक्टूबर को पितृपक्ष समापन, तर्पण करने से शुभ हो जाती हैं हाथ की रेखाएं|

पितृपक्ष में देव और पितरों का तर्पण करने का काफी महत्व है। तर्पण से वंश वृद्धि के साथ-साथ जन्मकुंडली के पितृदोष का भी निवारण होता है। मान्यता है कि जिस हाथ से देव-पितर का तर्पण होता है उस हाथ की रेखाएं भी शुभ हो जाती हैं। ज्योतिषाचार्य व श्रीमन् नारायण सेवा संस्थान, पटना के प्रमुख विपेंद्र झा माधव ने धर्मशास्त्रों के हवाले से बताया कि आश्विन का महीना बारह महीनों में उत्तम महीना होता है।
इस मास का पहला पक्ष अर्थात् कृष्ण पक्ष पितृपक्ष होता है और दूसरा पक्ष देवी पक्ष होता है। पितृपक्ष में इस मंत्र से देव व पितरों का तर्पण करना चाहिए..ऊ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य, नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:। इससे आयु, आरोग्यता, यश, धन की वृद्धि होती है। वैसे तो हर दिन तर्पण करने का विधान है किंतु ऐसा संभव नहीं होने पर माता-पिता की पुण्यतिथि पर, अमावास्या को तथा पितृपक्ष में तर्पण एवं श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध माता-पिता की मृत्यु की तिथि को करना चाहिए। यदि सही तिथि याद नहीं हो तो अमावास्या को पार्वण श्राद्ध किया जा सकता है। माता-पिता की बरसी के दिन वार्षिक एकोदिष्ट श्राद्ध करना चाहिए।

अमावास्या के दिन पितर वायु रूप धारण कर गृह के द्वार पर अपने वंशज के द्वारा श्राद्ध एवं तर्पण की अभिलाषा से खड़े रहते हैं तथा सूर्यास्त होने पर कुपित होकर चले जाते हैं। अत: तर्पण एवं श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। तर्पण कुश, जल एवं तिल से करना चाहिए तथा श्राद्ध अन्न ,मधु ,तिल, गोघृत आदि से किया जाता है। श्राद्ध के बाद सदाचारी ब्राह्मण को भोजन कराने का विधान है। शास्त्र कहता है कि परलोक गत पितर ब्राह्मण भोजन के समय वायु रूप में ब्राह्मण के शरीर में प्रविष्ट होकर उस भोजन से तृप्त होते हैं। देश में बिहार के गया क्षेत्र में ,राजस्थान के पुष्कर में तथा उत्तराखंड के ब्रह्मकपाली में पितरों के श्राद्ध का खास महत्व है। यहां पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

livehindustan

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